संयुक्त अरब अमीरात के कनिष्ठ विदेश व्यापार मंत्री, थानी बिन अहमद अल ज़ायौदी (junior foreign trade minister of the UAE Thani Bin Ahmed Al Zeyoudi) ने यहां उद्योग लॉबी सीआईआई द्वारा आयोजित भारत-यूएई आर्थिक मंच को बताया, 'यद्यपि हमने संयुक्त अरब अमरीकी डालर के व्यापार अमीरात-भारत द्विपक्षीय व्यापार को वर्तमान से 100 बिलियन अमरीकी डालर तक ले जाने के लिए पांच साल की समय सीमा निर्धारित की है, सीईपीए पर हस्ताक्षर करने के बाद से व्यापार बढ़ रहा है, मुझे विश्वास है कि हम अगले दो-तीन वर्षों में लक्ष्य को हासिल कर लेंगे.'

bretton woods conference

वैश्विक बाज़ार में डॉलर का वर्चस्व

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत वैश्विक बाज़ार में डॉलर के वर्चस्व और उसकी भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

अमेरिकी डॉलर निस्संदेह वैश्विक वित्तीय प्रणाली का प्रमुख चालक है। केंद्रीय अमरीकी डालर के व्यापार बैंकों के लिये प्रमुख आरक्षित मुद्रा से लेकर वैश्विक व्यापार एवं उधार लेने हेतु मुख्य साधन के रूप में अमेरिकी डॉलर विश्व भर के बैंकों और बाज़ारों के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्ष 2017 में जारी एक शोध पत्र के मुताबिक कुल अमेरिकी डॉलर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से बाहर मौजूद है। यह आँकड़ा विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये डॉलर के महत्त्व को स्पष्ट करता है। हालाँकि गत वर्षों में कई देशों की सरकारों ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है, उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रुसी बंदरगाहों पर अमेरिकी डॉलर के माध्यम से व्यापार न करने का आदेश दिया था। परंतु जानकारों का मानना है कि डी-डॉलराइज़ेशन या वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी निकट भविष्य में संभव नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे दुनिया भर में व्यापार या विनियम के माध्यम के रूप में स्वीकार किया अमरीकी डालर के व्यापार जाता है। अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन आदि विश्व की कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को आरक्षित मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया भर की 180 प्रचलित मुद्राओं को मान्यता प्रदान की अमरीकी डालर के व्यापार है और अमेरिकी डॉलर भी इन्हीं में से एक है, परंतु खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश का प्रयोग मात्र घरेलू स्तर पर ही किया जाता है।
    • विश्व भर के बैंकों की डॉलर पर निर्भरता को वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में स्पष्ट रूप से देखा गया था।
    • आरक्षित मुद्रा के रूप में
      • अंतर्राष्ट्रीय क्लेम को निपटाने और विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार रखते हैं।
      • अंतर्राष्ट्रीय अमरीकी डालर के व्यापार मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी ज्ञात केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 61 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी डॉलर का है।
      • अमेरिका डॉलर के बाद यूरो को सबसे लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना जाता है, विदित हो कि वर्ष 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा यूरो का है।
      • गौरतलब है कि वर्ष 2010 से जापानी येन (Yen) की आरक्षित मुद्रा के रूप में भूमिका में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन (Yuan) और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, यद्यपि यह अभी मात्र 2 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है।

      डॉलर के विकास की कहानी

      • उल्लेखनीय है कि पहला अमेरिकी डॉलर वर्ष 1914 में फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा छापा गया था। 6 दशकों से कम समय में ही अमेरिकी डॉलर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आ गया, हालाँकि डॉलर अमरीकी डालर के व्यापार के लिये इतने कम समय में ख्याति हासिल करना शायद आसान नहीं था।
      • यह वह समय था जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पछाड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही थी, परंतु ब्रिटेन अभी भी विश्व का वाणिज्य केंद्र बना हुआ था क्योंकि उस समय तक अधिकतर देश ब्रिटिश पाउंड के माध्यम अमरीकी डालर के व्यापार से ही लेन -देन कर रहे थे।
        • साथ ही कई विकासशील देश अपनी मुद्रा विनिमय में स्थिरता लाने के लिये उसके मूल्य का निर्धारण सोने (Gold) के आधार पर कर रहे थे
        • इस व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।

        भारत-इस्राइल द्विपक्षीय व्यापार 8 बिलियन अमरीकी डालर के करीब है : इजरायली दूत

        गिलॉन ने कहा, "जब हमने 30 साल पहले पूर्ण राजनयिक संबंध शुरू किए थे, तब अमरीकी डालर के व्यापार हमारे व्यापार में 200 मिलियन अमरीकी डालर थे। इसलिए अब हम 8 बिलियन अमरीकी डालर के करीब हैं। और यह बिना रक्षा के है। हमारी संख्या काफी अच्छी चल रही है।"

        भारत में निवेश की बात करते हुए गिलॉन ने कहा कि करीब 300 इजरायली कंपनियों ने भारत में निवेश किया है. पुणे में, Amdocs इज़राइली कंपनी लगभग 14,000 भारतीय कर्मचारियों के साथ यहाँ की सबसे बड़ी इज़राइली कर्मचारी है

        "जब डॉ जयशंकर इज़राइल में थे, तो उन्होंने एफटीए के साथ आगे बढ़ने के बारे में बात की थी। लेकिन दुर्भाग्य से, यह थोड़ा ढेर है क्योंकि अमरीकी डालर के व्यापार हम समानांतर में बहुत सी चीजें कर रहे हैं, एफटीए सहित अन्य देशों के साथ। मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही ट्रैक पर वापस आ जाएगा और हम एफटीए को अंतिम रूप दे सकता है," इजरायल के राजदूत नोर गिलोन ने कहा।

        डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?

        एक समय था जब एक अमेरिकी डॉलर सिर्फ 4.16 रुपये में खरीदा जा सकता था, लेकिन इसके बाद साल दर साल रुपये का सापेक्ष डॉलर महंगा होता जा रहा है अर्थात एक डॉलर को खरीदने के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पास रहे हैं. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था और 18 फरवरी, 2020 को यह 71.39 रुपये हो गया है. आइये इस लेख में जानते हैं कि डॉलर दुनिया में सबसे मजबूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?

        Why Dollar is Global Currency

        दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर डॉलर को विश्व में सबसे मजबूत मुद्रा के रूप अमरीकी डालर के व्यापार में क्यों जाना जाता है?

        भारत के साथ व्यापार 2-3 वर्षों में 100 अरब अमरीकी डालर के व्यापार अमेरिकी डॉलर पार करेगा : यूएई

        भारत और यूएई के बीच व्यापार बढ़ रहा है. दो से तीन साल में इसके 100 अरब डॉलर के स्तर को पार करने की उम्मीद जताई गई है (UAE expects trade with India to cross USD 100 billion mark). पढ़ें पूरी खबर.

        मुंबई : संयुक्त अरब अमीरात को उम्मीद है कि व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते से अगले दो-तीन वर्षों में भारत के साथ व्यापार 100 अरब अमरीकी डालर के व्यापार डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा. वित्त वर्ष 2022 में भारत-यूएई व्यापार 73 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसे 1 मई, 2022 को व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) पर हस्ताक्षर करने के बाद से बड़ा प्रोत्साहन मिला.

        वित्त वर्ष 2021-2022 के बीच कुल व्यापार 68 प्रतिशत बढ़ गया. 2022 के पहले छह महीनों में गैर-तेल व्यापार के कुल मूल्य 29.5 बिलियन अमरीकी डालर के साथ द्विपक्षीय व्यापार में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि हुई है, जो 2021 में इसी अवधि में 22 प्रतिशत बढ़ा है. गैर-तेल निर्यात भी मई और जून के बीच कुल मूल्य के साथ 31 प्रतिशत बढ़कर 2.7 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंच गया है.

        सम्बंधित ख़बरें

        उन्होंने कहा कि जनवरी से जून के बीच अमेरिका ने भारत को 23 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत ने अमेरिका को 44 अरब डॉलर का निर्यात किया है. मेलिंडा पावेक ने कहा, 'बीते एक साल में अमेरिका का अपने शीर्ष 15 साझेदारों के साथ व्यापार बढ़ा है और मैं गर्व के साथ कहना चाहती हूं कि सबसे बड़ी बढ़ोतरी भारत के साथ व्यापार में हुई है. अमेरिकी कंपनियां भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत हैं.'

        गौरतलब है कि अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2021-22 में 119.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा था. जबकि वर्ष 2020-21 में यह 80.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. अमेरिका को निर्यात वर्ष 2021-22 में बढ़कर 76.11 बिलियन अमेरिकी डॉलरा हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष में 51.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि 2020-21 में आयात लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 43.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया.

रेटिंग: 4.75
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 223