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वित्त आयोग (Finance Commission) – 1951

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वित्त आयोग (Finance Commission) को 22 नवम्बर, 1951 में संविधान के अनुच्छेद फैलता है और आयोग 280 के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा पहली बार संविधान लागू होने के दो वर्ष के भीतर गठित किया गया. इस आयोग के प्रथम अध्यक्ष के.सी. नियोगी थे. प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या उससे पहले ऐसे समय, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझे, एक वित्त आयोग को गठित करता है. राष्ट्रपति द्वारा गठित इस आयोग में एक अध्यक्ष (chairman) और चार अन्य सदस्य (members) होते हैं.

अध्यक्ष और अन्य सदस्य की योग्यता

  1. इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति चुना जाता है जो सार्वजनिक कार्यों में व्यापक अनुभव वाला होता है. वित्त आयोग 2017 के अध्यक्ष योजना आयोग के पूर्व सदस्य थे.
  2. शेष चार सदस्यों में एक उच्च न्यायालाय का न्यायाधीश या किसी प्रकार का योग्यताधारी होता है.
  3. दूसरा सदस्य सरकार के वित्त और लेखाओं का विशेष ज्ञानी होता है.
  4. तीसरा सदस्य वित्तीय विषयों और प्रशासन के बारे में व्यापक अनुभव वाला होता है.
  5. चौथा सदस्य अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञानी होता है.

वित्त आयोग के कार्य

आयोग का यह कर्तव्य है कि वह निम्न विषयों पर राष्ट्रपति को सिफारिश करता है –

  1. आय कर और अन्य करों से प्राप्त राशि का केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किस अनुपात में बँटवारा किया जाये.
  2. “भारत के संचित कोष” से राज्यों के राजस्व में सहायता देने के क्या सिद्धांत हों.
  3. सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे गए अन्य विषय के बारे में आयोग राष्ट्रपति को सिफारिश करता है.

राष्ट्रपति वित्त आयोग की संस्तुतियों को संसद के समक्ष रखता है. अनुच्छेद -280, अनुच्छेद -270, 273, 275 भी इसकी पुष्टि करते हैं. संविधान के अनुच्छेद 280 के मुताबिक़ वित्त आयोग जिन मुद्दों पर राष्ट्रपति को परामर्श देता है, उनमें टैक्स से कुल प्राप्तियों का केंद्र और राज्यों में बँटवारा, भारत की संचित निधि से राज्य सरकार को दी जाने वाली सहायता/अनुदान के सम्बन्ध में सिफारिशें शामिल होती हैं.

पिछले वर्षों में राज्य सरकारें निरंतर यह कहती रहीं हैं कि केंद्र सरकार द्वारा उन्हें अधिक वित्तीय साधन प्रदान किये जाने फैलता है और आयोग चाहिए. सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों में निरंतर वृद्धि की है.

केंद्र और राज्य सम्बन्ध

  1. संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत संसद कानून के जरिये जरुरत पड़ने पर राज्यों को अनुदान के तौर पर पैसा दे सकती है.
  2. यह अनुदान कितना होगा ये वित्त आयोग के सिफारिशों के बाद तय होगा.
  3. इसके अलावा अनुच्छेद 282 के तहत केंद्र और राज्य दोनों किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान दे सकते हैं. लेकिन इसे वित्त आयोग के निर्णय क्षेत्र से बाहर रखा गया है.

15th Finance Commission

अभी 15वाँ वित्त आयोग (Finance Commission) चल रहा है. सबसे हाल में नवम्बर 2017 में इसे N.K. Singh की अध्यक्षता में गठित किया गया.

एक आम परिवार में जैसे सेविंग अकाउंट होता है ठीक वैसे ही केंद्र और राज्यों की कमाई का सारा पैसा देश की संचित निधि में फैलता है और आयोग चला जाता है. कमाई का हिस्सा भले ही कम-ज्यादा हो लेकिन इसका बँटवारा संविधान के मुताबिक़ समान रूप से होना चाहिए. इस कमाई को सब में बराबर से बाँटने का जिम्मा है विधि आयोग यानी finance commission के पास. विधि आयोग/वित्त आयोग यानी वह संवैधानिक संस्था जो केंद्र से लेकर राज्यों के विकास से लेकर कई कामों के लिए वित्तीय संसाधनों का बँटवारा करती है.

1951 से लेकर अब तक 15 वित्त योग गठित हो चुके हैं और हर बार राज्यों और केंद्र के बीच पैसों के बँटवारे को लेकर काफी चर्चा और विवाद होते रहे हैं. 15वाँ वित्त आयोग भी कुछ ऐसे ही विवाद और विरोध झेल रहा है.

15वें वित्त आयोग पर बवाल क्यों?

15वें वित्त आयोग में वित्तीय वितरण का आधार 2011 की जनगणना को बनाने का प्रावधान था. ऐसे में अगर 2011 की जनसंख्या राजस्व बँटवारे का आधार बनती है तो वे राज्य फायदे में रहेंगे जिनकी आबादी बढ़ गयी है. जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों की जनसंख्या की दर में गिरावट देखी गई थी. इसको लेकर दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों की सरकार ने 15वें वित्त आयोग के इस नए प्रावधान की कड़ी आलोचना की थी.

Explainer: परिसीमन का क्या मतलब होता है, चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर में क्यों जरूरी?

जम्मू-कश्मीर में अगर चुनाव होना है तो उसके लिए 'परिसीमन प्रक्रिया' का जल्द पूरा होना और ज्यादा जरूरी है. परिसमीन का अर्थ क्या होता है, ये सवाल कई लोगों के मन में है.

जम्मू कश्मीर में चुनाव से पहले परिसीमन प्रक्रिया पर जोर (पीटीआई)

सुधांशु माहेश्वरी

  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2021,
  • (अपडेटेड 27 जून 2021, 9:01 AM IST)
  • परिसीमन प्रक्रिया का क्या मतलब होता है?
  • जम्मू-कश्मीर में इस प्रक्रिया के बाद क्या बदलेगा?
  • परिसीमन के राजनीतिक मायने क्या हैं?

जम्मू कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 जून को एक अहम बैठक की थी. उस बैठक में साफ कहा गया कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए चुनाव का होना जरूरी है, और अगर चुनाव होना है तो उसके लिए 'परिसीमन प्रक्रिया' का जल्द पूरा होना और ज्यादा जरूरी है. परिसमीन का अर्थ क्या होता है, ये सवाल कई लोगों के मन में है. आसान भाषा में समझिए परिसमीन का मतलब क्या है और जम्मू-कश्मीर में इसको लेकर सियासत क्यों गरमाई है.फैलता है और आयोग

आसान भाषा में समझिए परिसीमन का अर्थ

हमारे लोकतंत्र में आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो, सभी को समान अवसर मिले, इस पर हमेशा जोर दिया जाता है. परिसीमन प्रक्रिया का आधार भी यही होता है. इसके तहत आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया के तीन मुख्य उदेश्य हैं-

1. चुनावी प्रक्रिया को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने के लिए परिसीमन जरूरी होता है. हर राज्य में समय के साथ जनसंख्या में बदलाव होते हैं, ऐसे में बढ़ती जनसंख्या के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निधारण होता है.

2. बढ़ती जनसंख्या के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों का सही तरीके से विभाजन हो सके, ये भी परिसीमन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. इसका उद्देश्य भी यही है कि हर वर्ग के नागरिक को प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिले.

3. चुनाव के दौरान 'आरक्षित सीटों' की बात कई बार की जाती है. जब भी परिसीमन किया जाता है, तब अनुसूचित वर्ग के हितों को ध्यान में रखने के लिए आरक्षित सीटों का भी निर्धारण करना होता है.

अब परिसीमन का अर्थ भी समझ आ गया है और इसके उदेश्य भी फैलता है और आयोग साफ हो गए हैं, अब सवाल आता है कि किसके द्वारा इस प्रकिया को पूरा किया जाता है? कौन परिसीमन प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होता है?

देश में परिसीमन का काम 'परिसीमन आयोग' या कह लीजिए 'सीमा आयोग' के द्वारा किया जाता है. अब तक पांच बार देश में परिसीमन प्रक्रिया होती दिखी है. साल 1952, 1963 ,1973 और 2002 में परिसीमन प्रक्रिया हुई थी. अब पांचवी बार फिर परिसीमन आयोग का गठन किया फैलता है और आयोग गया है. इस बार जम्मू-कश्मीर और 4 पूर्वोत्तर राज्यों में इस प्रक्रिया को संपन्न होना है. 2020 में ही इस पांचवे आयोग का गठन कर दिया गया था.

अब वैसे तो परिसीमन की प्रक्रिया काफी आम रहती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में इसको लेकर बवाल है. घाटी के कई स्थानीय नेता परिसीमन का विरोध कर रहे हैं. वे इस मुद्दे पर भारत सरकार से सहमत नजर नहीं आ रहे हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि अभी जम्मू कश्मीर में परिसीमन की कोई जरूरत नहीं है.

J-K में परिसीमन प्रक्रिया के बाद क्या बदलेगा?

यहां पर जम्मू-कश्मीर और परिसीमन को राजनीतिक दृष्टि से समझना काफी जरूरी हो जाता है. कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा परिसीमन का विरोध इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि ऐसा होते ही जम्मू-कश्मीर में सियासी समीकरण हमेशा के लिए बदलने जा रहे हैं. इसे इस तरह से समझा जा सकता है- पुनर्गठन अधिनियम लागू होने से पहले तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 111 सीटें थीं. इसमें कश्मीर के खाते में 46 सीटें, जम्मू के खाते में 37 और लद्दाख के खाते में 4 सीटें रहती थीं. वहीं पाक अधिकृत कश्मीर की 24 सीटों को भी इसी में गिना जाता था. अब वर्तमान परिस्थिति में लद्दाख की चार सीटें समाप्त हो चुकी हैं और जम्मू-कश्मीर में सिर्फ 107 सीटें रह गई हैं.

घाटी के नेता इसका विरोध क्यों कर रहे?

अब कहा ये जा रहा है कि इस परिसीमन प्रक्रिया की वजह से कुल 7 सीटें और बढ़ाई जा सकती हैं. जानने वाली बात ये है कि वो सात सीटें जम्मू में बढ़ सकती हैं, ऐसे में कश्मीर में तो 46 सीटें ही रहने वाली हैं, लेकिन जम्मू में ये आंकड़ा 37 से बढ़कर 44 हो जाएगा. अब राजनीतिक लिहाज से ये एक तरफ बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है तो वहीं पीडीपी और एनसी जैसी स्थानीय पार्टियों के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है. ऐसा देखा गया है कि जम्मू में बीजेपी ने खुद को मजबूत कर रखा है, वहीं घाटी में पीडीपी और एनसी की अच्छी पकड़ है. अब तक के चुनावों में ऐसा देखा गया था कि घाटी में बेहतरीन प्रदर्शन कर भी जम्मू-कश्मीर सरकार बन जाती थी, अकेले जम्मू का योगदान कम रहता था. लेकिन अगर ये सात सीटें जम्मू के साथ जुड़ जाती हैं, तो इससे राजनीतिक समीकरण बदलते दिख सकते हैं. इसी बात की चिंता स्थानीय पार्टियों को है और परिसीमन का विरोध भी किया जा रहा है.

7th Pay Commission Latest News: डीए बहाली के बाद फिटमेंट फैक्टर का क्या होगा सैलरी पर असर

करीब 52 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को 1 जुलाई से उनकी सैलरी बढ़ने की उम्मीद है। इस उम्मीद की वजह सातवें वेतन फैलता है और आयोग आयोग की सिफरिशें हैं। केंद्रीय कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के तहत डीए बकाये और.

7th Pay Commission Latest News: डीए बहाली के बाद फिटमेंट फैक्टर का क्या होगा सैलरी पर असर

करीब 52 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को 1 जुलाई से उनकी सैलरी बढ़ने की उम्मीद है। इस उम्मीद की वजह सातवें वेतन आयोग की सिफरिशें हैं। केंद्रीय कर्मचारियों को 7वें वेतन आयोग के तहत डीए बकाये और पेंशनरों को डीआर का भुगतान का इंतजार है। नेशनल काउंसिल ऑफ जेसीएम के सेक्रेटरी (स्टाफ साइड) शिव गोपाल मिश्रा के मुताबिक इसको लेकर 26th June 2021 को एक बैठक होगी, जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सेक्रेटरी करेंगे। उन्होंने कहा कि इस बैठक में मुख्य रूप से 7वें वेतन आयोग के डीए और डीआर पर चर्चा होगी।

बता दें केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी के चलते महंगाई भत्ते को रोक दिया था, लेकिन इसको जल्द ही देने का प्लान बनाया जा रहा है। जुलाई में केंद्रीय कर्मचारियों के खाते में यह भत्ता ट्रांसफर किया जा सकता है। महंगाई भत्ते के बीच में एक ध्यान देने वाली बात फिटमेंट फैक्टर की है। केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी तय करने में फिटमेंट फैक्टर का एक अहम योगदान होता है। फिटमेंट फैक्टर लगने की वजह से ही केंद्रीय कर्मचारियों की मिनिमम सैलरी सीधे 6000 रुपए से 18000 रुपये पहुंच गई थी।

क्या होता है फिटमेंट फैक्टर?

7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, फिटमेंट फैक्टर 2.57 है। केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी तय करते समय, भत्तों के अलावा जैसे महंगाई भत्ता, यात्रा भत्ता, हाउस रेंट अलाउंट कर्मचारी की बेसिक सैलरी को 7वें वेतन आयोग के फिटमेंट फैक्टर 2.57 से गुणा करके निकाला जाता है।

DA बहाली के बाद फिटमेंट फैक्टर का क्या होगा सैलरी पर असर

एक उदाहरण के जरिए शिव गोपाल मिश्रा ने समझाते हुए कहा कि अगर किसी फैलता है और आयोग केंद्रीय कर्मचारी का मासिक वेतन 20,000 रुपये है तो नए नियमों के लागू होने पर उसका मासिक वेतन 51,400 (2000x2.57) रुपये होगा। इसके बाद टीए, डीए ,मेडिकल रिम्बर्समेंट जैसे भत्ते की गणना की जाएगी। इसके बाद मंथली बेसिक पे और कुल भत्ते मिलकर किसी कर्मचारी को हर महीने मिलने वाला वेतन होगा। बेसिक सैलरी किसी कर्मचारी के कुल मासिक सैलरी का करीब 50 फीसद होता है। इस तरह अगर कोई केंद्रीय फैलता है और आयोग फैलता है और आयोग कर्मचारी की बेसिक सैलरी अगर 20 हजार रुपये है तो उसकी ग्रॉस मंथली सैलरी करीब 1,02,800 (51,400x2) रुपये होगी। इसके बाद इस सैलरी पर मंथली PF कंट्रीब्यूशन, सोर्स पर इनकम टैक्स आदि कटौती की जाएगी। उसके बाद कर्मचारी के टेक होम सैलरी का निर्धारण होगा।

नेशनल काउंसिल ऑफ जेसीएम के शिव गोपाल मिश्रा कहते हैं कि लेवल एक के कर्मचारियों का डीए एरियर 11,880 रुपये से लकेर 37, 554 रुपये के बीच होगा। उन्होंने कहा कि यदि लेवल-13 (7वें सीपीसी मूल वेतनमान ₹1,23,100 से ₹2,15,900) या लेवल-14 (वेतनमान) के लिए गणना की जाती है तो केंद्र सरकार के एक कर्मचारी का डीए बकाया लाखों (₹1,44,200 से ₹2,18,200) जाएगा।

जनवरी से जून 2020 तक डीए एरियर इतना बनेगा

केंद्रीय कर्मचारी जिनका न्यूनतम ग्रेड पे 1800 रुपये (लेवल-1 बेसिक पे स्केल रेंज 18000 से 56900 ) को 4320 रुपये [ < 18000 का 4 फीसद>X 6] से 13656 रुपये [< 56900 का 4 फीसद>X6]. 7वें वेतन आयोग के तहत मिनिमम ग्रेड पे पर केंद्रीय कर्मचारियों का जुलाई से दिसंबर 2020 तक डीए एरियर 3,240 रुपये [x6] से 10,242 रुपये [x6] होगा। जबकि, जनवरी से जुलाई 2021 के बीच डीए एरियर की गणना करें तो 4,320 [< 18,000 रुपये का 4 फीसद>x6] से 13,656 रुपये [x6].


इसका मतलब किसी केंद्रीय कर्मचारी, जिसका न्यूनतम बेसिक सैलरी 18000 रुपये है, उसे डीए एरियर के रूप में 11,880 रुपये फैलता है और आयोग मिलेंगे( 4320 + 3240 + 4320 रुपये)। अगर केंद्रीय कर्मचारियों के पे-मैट्रिक्स के हिसाब से न्यूनतम वेतन 18000 रुपए है और इसमें 15 फीसद महंगाई भत्ता जुड़ने की उम्मीद है. इस लिहाज से 2700 रुपए महीना सीधे तौर पर सैलरी में जुड़ जाएगा। सालाना आधार पर अगर देखें तो कुल महंगाई भत्ता 32400 रुपए बढ़ जाएगा। दरअसल, जून 2021 के महंगाई भत्ते का भी ऐलान होना है। सूत्रों की मानें तो वह भी 4 फीसद बढ़ने का अनुमान है। अगर ऐसा होता है तो 1 जुलाई को तीन किस्तों के भुगतान के बाद अगले 6 महीने में 4 फीसद का और भुगतान हो सकता है।

WBPSC भर्ती 2022-23: 158 पशु चिकित्सा अधिकारी के लिए लोक सेवा आयोग जल्द जारी करेगा नोटिफिकेशन, कैसे करें डाउनलोड

पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग जल्द ही वेटरनरी ऑफिसर के रिक्त पदों के लिए नोटिफिकेशन जारी करेंगी। इच्छुक उम्मीदवार आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

WBPSC भर्ती 2022-23: 158 पशु चिकित्सा अधिकारी के लिए लोक सेवा आयोग जल्द जारी करेगा नोटिफिकेशन, कैसे करें डाउनलोड

पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग जल्द ही वेटरनरी ऑफिसर भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा एक नोटिफिकेशन जारी करेंगी। कुल 158 रिक्त पदों के लिए यह भर्ती प्रक्रिया चलाई जाएगी।यह वेकैंसी पश्चिम बंगाल पशुपालन, पशुपालन सेवा, पशु सेवा निदेशालय, पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा के लिए निकाली जाएगी। फैलता है और आयोग इच्छुक उम्मीदवार आयोग की आधिकारिक वेबसाइट wbpsc.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

वेकैंसी-
पशु चिकित्सा अधिकारी-158
सामान्य वर्ग-76
एससी -31
एसटी- 08
ओबीसी ए- 17
ओबीसी बी- 12

वेकैंसी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी आयोग की ओर से 19 दिसंबर को उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर जारी किया जाएगा। जिसमें वेकैंसी के लिए, शौक्षणिक योग्यता, आयु सीमा, वेतन और आवेदन करने की आखिरी तारीख सभी जरूरी विषयों के बारे में सूचना दी जाएगी।

नोटिफिकेशन कैसे डाउनलोड करें-

1. पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की आधिकारिक वेबसाइट wbpsc.gov.in पर जाएं।

2. होमपेज के अनाउंसमेंट भाग में जाएं।

3. इस लिंक पर जाएं पर क्लिक करें।

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5. पीडीएफ डाउनलोड कर ,जॉब से जुड़ी सभी जानकारी ध्यान से पढ़ें।

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