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29 जनवरी, 2022 को जबलपुर से लोकसभा सांसद राकेश सिंह ने बताया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने मध्य डायनासोर घाटी राज्य पार्क डायनासोर घाटी राज्य पार्क प्रदेश के जबलपुर जिले में नर्मदा नदी के तट पर लम्हेटा गाँव में देश के पहले जियो पार्क की स्थापना को मंजूरी दे दी है।
बैलाडीला की पहाड़ियों में ‘जुरासिक पार्क’, डायनासोर का दाना-पानी आज भी है मौजूद, देखिए वीडियो…
आजाद सक्सेना, दंतेवाड़ा। दंतेवाडा बैलाडीला की पहाड़ी में एक 90 फीट ऊंचे जल प्रपात की स्थानीय युवाओं ने खोज की है.किरंदुल हरी घाटी में स्थित इस प्रपात के चारों तरफ ट्री फर्न के सैकड़ों पेड़-पौधे भी मिले हैं. अफसरों का दावा है कि यह जुरासिक काल के हैं. बताया जा रहा है कि, बैलाडीला की इस घनघोर वादियों में हजारों साल पहले शाकाहारी डायनासोर की प्राजाति यहां रहती थी. उनका मुख्य आहार ट्री फर्न था. ट्री फर्न की पत्तियों को खाकर वे इस जल प्रपात के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे. अब स्थानीय लोगों ने इस जगह को ‘द जुरासिक पार्क’ नाम दे दिया है.
दंतेवाड़ा जिले में किरंदुल शहर से महज 10 से 12 किमी की दूर बैलाडीला की पहाड़ी में एक जल प्रपात और ट्री फर्न का बगीचा स्थित है. जो आज डायनासोर घाटी राज्य पार्क तक लोगों की नजरों से ओझल था. जिस जगह यह स्थित है उस इलाके को स्थानीय लोग हरी घाटी के नाम से जानते डायनासोर घाटी राज्य पार्क हैं. ये इसलिए क्योंकि, यह इलाका हमेशा घने पेड़-पौधों से हरा-भरा रहता है. हालांकि, यहां तक पहुंचना भी किसी के लिए आसान नहीं है. क्योंकि, आज इस इन पहाड़ों में माओवादियों का डेरा है. इसके अलावा NMDC लीज के दायरे में यह आता है. फिर भी घने जंगल पहाड़ी रास्तों का पैदल सफर तय कर स्थानीय युवा यहां पहुंचे, जिसके बाद ही इस जल प्रपात और ट्री फर्न के बगीचा की तस्वीर सामने आई.
90 फीट की ऊंचाई से गिरता है पानी
हालांकि, प्रकृति की गोद में स्थित हरी घाटी का यह जल प्रपात करीब 90 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरता है. पानी सफेद मोतियों की तरह नजर आता है. बारिश के दिनों में यहां 3 से ज्यादा धाराएं नीचे गिरती है. ऐसा बताया जा रहा है कि बैलाडीला के पहाड़ी पानी से यह जल प्रपात बनता है. प्रपात से पानी नीचे गिरने के बाद नीचे एक कुंड में जमा होता है. फिर वहां से एक धार में बहकर पास के ही एक बरसाती नाले में जाकर इसका पानी मिल जाता है. इस जल डायनासोर घाटी राज्य पार्क प्रपात तक पहुंचने से पहले ट्री फर्न के पेड़ों के बीच से एक पतली पगडंडी से गुजरना पड़ता है.
बैलाडीला में दूसरी बार ट्री फर्न की हुई पुष्टि
बैलाडीला की पहाड़ी में कई दुर्लभ प्राजाति की वनस्पतियां और जीव-जंतु हैं. इनमें से एक ट्री फर्न भी है. कुछ साल पहले बैलाडीला की पहाड़ी पर आकाश नगर के पास ट्री फर्न के कुछ छोटे-छोटे पेड़ पौधे मिले थे. जिसे राष्ट्रीय औषधि और पादप मंडल ने संरक्षित कर रखा है. ट्री फर्न के मिलने के डायनासोर घाटी राज्य पार्क बाद ही इस बात की पुष्टि हुई थी कि बैलाडीला की पहाड़ी छ्त्तीसगढ़ का एक मात्र ऐसा इलाका था जहां हजारों साल पहले शाकाहारी डायनासोर की प्राजाति रहती थी. वन विभाग के SDO अशोक सोनवानी ने बताया कि, ट्री फर्न के पौधे को पेड़ का रूप लेने में करीब 2 से ढाई हजार साल का समय लगता है.
तस्वीरें आने के बाद बोले- करेंगे संरक्षण
अशोक सोनवानी ने कहा कि, पूरे विश्व में अफ्रीका और अमेरिका के बाद बैलाडीला की पहाड़ी में जुरासिक काल का ट्री फर्न का पौधा है. ट्री फर्न के पेड़-पौधे मिलने के बाद रिसर्च के मुताबिक यह अनुमान लगाया गया था कि, जुरासिक काल में यहां भी शाकाहारी डायनासोर की प्राजाति थी. जिन जगहों पर बहुतायत से ट्री फर्न होते थे वहां डायनासोर की संख्या भी अधिक होती थी. अब जिन-जिन जगहों पर ट्री फर्न मिले हैं उन जगहों का संरक्षण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि, इसके लिए ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है.
डायनासोर के करोड़ों साल पुराने अंडे बन गए पत्थर, अब पर्यटन स्थल बनाने की तैयारी
जबलपुर. ‘डायनासोर के जीवाश्म क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। जबलपुर में नर्मदा का बड़ा किनारा विशालकाय डायनासोरों आवास रहा है। डायनासोर के अंडे और जीवाश्म जो कि अब पत्थर बन चुके हैं को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, तो दुनियाभर से पर्यटक उन्हें देखने आएंगे। पर्यटन स्थलों के विकास दिशा में प्रयास रुकने नहीं चाहिए। पहुंच मार्गों को सुदृढ करें।’ सम्भागायुक्तराजेश बहुगुणा ने गुरुवार को नर्मदा तट तिलवाराघाट के निरीक्षण के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि घुघराघाट को इस तरह से विकसित किया जाए कि यहां पर्यटकों की संख्या बढ़े और वे इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को समझ सकें।
750 लाख वर्ष पहले नर्मदा घाटी में था समुद्र, यह रहा सबूत
धार (नईदुनिया)। 750 लाख वर्ष पुरानी समुद्री शार्कों के जीवाश्म मनावर क्षेत्र में आने वाली नर्मदा घाटी से मिले
हैं। खोज के दौरान 20 हजार से अधिक दांत के जीवाश्म और रीढ़ की हड्डी के भाग बड़ी तादाद में मिले, जिनकी जांच के बाद यह सिद्घ हुआ कि करीब 750 लाख वर्ष पूर्व समुद्री हलचल के कारण ये यहां के समुद्र में पहुंची थीं। इससे यहां समुद्र होने की भी पुष्टि हुई है।
अलग थी भौगोलिक स्थिति : उस काल में भारत लगभग पृथ्वी की विषुवत रेखा पर स्थित था। बिना हड्डी की ये मछलियां आकार में चार से छह मीटर लंबी थीं। यह जानकारी मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. डॉ. जीवीआर प्रसाद ने पत्रकारवार्ता में दी। डॉ. प्रसाद शांति डायनासोर घाटी राज्य पार्क स्वरूप भटनागर पुरस्कार और नेशनल जिओ साइंस पुरस्कार व जेसी बोस नेशनल डायनासोर घाटी राज्य पार्क फैलोशिप प्राप्त विशेषज्ञ हैं। इस मौके पर डायनासोर व शार्क की खोज करने वाले धार के विशेषज्ञ विशाल ज्ञानेश्वर वर्मा, डॉ. अशोक साहनी, रणजीत सिंह लौरेंबम, प्रियदर्शिनी राजकुमारी आदि मौजूद थे।
इस तरह खोज को किया प्रमाणित: इन जीवाश्मों की खोज लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन प्रामाणिकता सिद्घ होने के बाद ही इसे उजागर किया गया। इस पर एक रिसर्च पेपर लिखा गया था, जो अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इस जीवाश्म की काल अवधि निकालने के डायनासोर घाटी राज्य पार्क लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। ये जीवाश्म जिस प्रकार की चट्टानों से मिले हैं, उन्हें बाग चट्टान यानी ब्रायोजोन फॉर्मेशंस के नाम से जाना जाता है।
मिल चुके हैं डायनासोर के भी हजारों जीवाश्म : यहां पर डायनासोर के जीवाश्म भी मिल चुके हैं। सबसे पहले 2007 में इन जीवाश्मों की खोज हुई थी। तब करीब 100 से अधिक डायनासोर के अंडे पाए गए थे। मनावर और बाग क्षेत्र में इसके अंडों के घोंसले वाली जगह मिली थी। इसके बाद से नेशनल डायनासोर जीवाश्म पार्क की घोषणा हुई। उसके बाद से अब तक यहां डायनासोर के हजारों जीवाश्म मिल चुके हैं।
कितने प्रकार की शार्क मछलियां
-गहरे पानी की टायकोडस शार्क।
-उथले पानी की स्कैपर्नोंरकस
-रैफ्यूडॉन, क्रेटा लेमना एपेंडिकुलेटा, क्रेटोडस क्रेसीडेंस, स्कवैली कॉरेक्स फॉलकिटस।
क्यों महत्वपूर्ण है खोज
बाग चट्टान से शार्क की यह पहली रिपोर्ट है। ये शार्क 750 लाख साल पहले धार जिले की नर्मदा घाटी में समुद्र की उपस्थिति प्रमाणित करती है, जो इन जीवों डायनासोर घाटी राज्य पार्क को उपयुक्त आवास प्रदान करता था। यह समुद्र एक भुजा जैसे आकार का था, जो भारत से पश्चिम के टेथिस सागर का एक भाग था।
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