बंदे ने बताया कि खेतों में जितना मटर लगा है, उससे 20 से 35 क्विंटन मटर निकलेगा. इसे उपजाने में लगभग 3 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. लेकिन अभी की स्थिति में इस 35 क्विंटल मटर की कीमत 17 से 22 हजार रुपये मिल रही है. वे कहते हैं कि अब आप ही बताइये, हम आत्महत्या न करें तो क्या करें. कुछ ऐसा ही कहना है दूसरे किसानों का.
रिबाउंड और ब्रेकडाउन पर लाभ लें
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स्ट्रेस बस्टर: लॉकडाउन के तनाव को कम करने में उपयोगी होंगे अनुलोम विलोम और भ्रामरी प्राणायाम
विधि : सुखासन या पद्मासन में बैठें। अपने बाएं हाथ को बाएं घुटने पर रखें। तर्जनी और मध्यमा को दोनों भौहों के बीच में, अनामिका और छोटी उंगली को नाक के बाएं नासिका पर, और अंगूठे को दाहिनी नासिका पर रखें। अपने अंगूठे को दाईं नासिका पर रखकर धीरे रिबाउंड और ब्रेकडाउन पर लाभ लें से दबाकर, बाईं नासिका से सांस लें। अब बाईं नासिका को अनामिका और छोटी उंगली के साथ धीरे से दबाएं। दाहिने अंगूठे को दाईं नासिका से खोलकर दाईं नासिका से सांस बाहर निकालें। फिर दाईं नासिका से सांस लीजिए और बाईं ओर से सांस छोड़िए। इस तरह नाड़ी शोधन प्राणायाम का एक दौर पूरा हुआ। इस तरह बारी-बारी से दोनों नासिका के माध्यम से सांस लेते हुए 3 से 5 राउंड पूरे करें।
दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना मरीजों का कैसा इलाज? देखें ग्राउंड रिपोर्ट
- नई दिल्ली,
- 16 जून 2020,
- अपडेटेड 11:08 PM IST
कहते हैं महानगरों के रिबाउंड और ब्रेकडाउन पर लाभ लें कई चेहरे होते हैं. दिल्ली के भी हैं. एक दिल वाला चेहरा, एक तंग दिल चेहरा. एक चाक-चौबंद तैयारियों का चेहरा. एक दबाव में चरमराते अस्पतालों का चेहरा. तो आखिर दिल्ली के अस्पतालों का चेहरा कैसा है. दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना मरीजों का कैसा इलाज हो रहा है? जानने के लिए देखें ये ग्राउंड रिपोर्ट.
माता-पिता ध्यान दें. घर पर अपने बच्चों को ऐसे पढ़ाएं, यहां जानें विशेषज्ञों की सलाह
How to Teach Kids at Home Jharkhand News Study Tips बच्चों की पढ़ाई में माता-पिता अहम भूमिका निभाएंगे। सरकारी स्कूलों के बच्चों के माता-पिता के लिए मार्गदर्शिका जारी हुई है। बच्चों की आनलाइन पढ़ाई से लेकर उनके व्यवहार पर भी वे नजर रखेंगे।
रांची, राज्य ब्यूरो। कोरोना वायरस के कारण स्कूलों के बंद रहने की स्थिति में अभी भी कक्षा आठ तक के बच्चों की पढ़ाई आनलाइन हो रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चों को वाट्सएप व दीक्षा एप के माध्यम से डिजिटल शैक्षणिक सामग्री भेजी जा रही है। बच्चे इसका सही लाभ ले सकें, उनकी पढ़ाई निरंतर जारी रहे तथा घरों में लगातार रहने के कारण उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर गलत असर न पड़े, इसमें उनके माता-पिता की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
पहले बेमौसम बारिश अब कोरोना ने रहा किसानों की जान
किसानों की मानें तो उनपर ईश्वर में दोहरी विपदा ला दी है. पहली बार तो जब खेती की शुरुआत में ही बेमौसम बरसात ने फसल बर्बाद की. उसे दवाई आदि डालकर ठीक किया, तो अब लॉक डाउन में सब्जियों को कीमत नहीं मिल रही.
सब्जी उगाने की लागत डेढ़ा हो गया और कीमत आधे से कम. वे कहते हैं कि जिस दिन हम खेत से सब्जियां तोड़ते हैं, उस दिन का खर्च भी बाजार में नहीं मिल पाता. ऐसे में खेतों में ही सब्जियां छोड़ना उपाय लग रहा है.
सब्जी की आठ मंडियां, लेकिन कीमत कहीं नहीं
राजधानी रांची से 50 किमी के दायरे में सब्जियों की आठ मंडियां हैं. सभी मंडियां हफ्ते में दो दिन लगती हैं. नगड़ी मंडी तो तीन दिन शुक्रवार, मंगलवार और रविवार को लगती है.
लॉकडाउन की वजह से मंडी में सब्जियों के भाव नहीं मिलने से परेशान किसान.
इसके अलावा बेड़ो मंडी सोमवार और गुरुवार, रातू का काटू मंडी सोमवार और गुरुवार, ब्रांबे मंडी मंगलवार और शनिवार, बिजूपाड़ा बुधवार, इटकी शनिवार और बुधवार इसके अलावा मांडर में रविवार को बाजार लगता है. जहां किसान खेत से सब्जी निकाल कर बेचते हैं. आप समझ सकते हैं कि इन आठ मंडियों में भी किसानों को कीमत नहीं मिल रही.
बिचौलिया ले रहे किसानों की जान
लॉकडाउन की अवधि में आठ सब्जी मंडियों में 6 व्यापारी ही हैं, जो किसानों से सब्जी लेकर शहरों में बेच रहे हैं. कई किसानों ने दबी जुबान बताया कि यही 6 व्यापारी हैं, जो लॉक डाउन का पूरा लाभ उठा रहे हैं. मंडी में किसानों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है.
आलम यह है कि व्यापारी के मन मुताबिक, कीमत पर सब्जियां नहीं देने पर सब्जियों को फेंक दिया जा रहा है. नाम नहीं छापने की शर्त पर नगड़ी, बेड़ो, बिजूपाड़ा के कुछ व्यापारियों ने फोन पर बताया कि यही मौका है, जब हमारी कमाई हो रही है.
ऐसे में क्यों न लाभ लें. वहीं एक व्यापारी का कहना है कि हमें भी मंडियों से बाजार तक ले जाना मुश्किल होता है. कोई भी मालवाहक जाना नहीं चाहता. अगर कोई जाने को तैयार होता भी है तो रास्ते में पुलिस परेशान करती है.
सरकार से ही सहारे की उम्मीद
अब किसानों को सरकार से ही एकमात्र उम्मीद है. वे कहते हैं कि फसल बर्बाद हो जाने के बाद मुआवजा देकर क्या फायदा. इससे अच्छा है कि सब्जी बाजार को मुक्त करें. सब्जी लाने रिबाउंड और ब्रेकडाउन पर लाभ लें ले जाने वाली गाड़ियों पर रोक न लगाये.
अभी सरकार यह कदम उठाती है तो जितनी लागत और मेहनत लगी है, वह हमें मिल जायेगी. किसानों का कहना है कि अभी की परिस्थिति रिबाउंड और ब्रेकडाउन पर लाभ लें में सरकार सब्जियों की लागत ही दिला दे तो मेहरबानी होगी.
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