कार्यशील पूंजी साइकिल का अर्थ है किसी व्यवसाय द्वारा शुद्ध वर्तमान देयताओं और परिसंपत्तियों को नकद में बदलने में लगने वाला समय. कार्यशील पूंजी साइकिल जितनी छोटी होगी, उतनी जल्दी कंपनी अपने अटके हुए पैसे को प्राप्त कर पाएगी. बिज़नेस अल्पकालिक अवधि में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए इस कार्यशील पूंजी साइकिल को कम करने का प्रयास करते हैं. बजाज फिनसर्व कार्यशील पूंजी में किसी भी घाटे को संबोधित करने और अनुकूल ऑपरेशन सुनिश्चित करने के लिए कार्यशील पूंजी लोन प्रदान करता है.
कार्यशील पूंजी क्या होती है
कार्यशील पूंजी दिन-प्रतिदिन के खर्चों के प्रबंधन के लिए बिज़नेस के लिक्विडिटी स्तर को इंगित करती है और इन्वेंटरी, कैश, देय अकाउंट, प्राप्य अकाउंट और शॉर्ट-टर्म डेब्ट को कवर करती है. यह किसी संगठन की अल्पकालिक फाइनेंशियल स्थिति का संकेतक है और यह इसकी समग्र दक्षता का एक मापन भी है.
कार्यशील पूंजी = वर्तमान संपत्ति - वर्तमान देनदारियां
यह गणना दर्शाती है कि कंपनी अपनी अल्पकालिक फाइनेंशियल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त एसेट रखती है.
वर्किंग केपिटल के स्रोत
कार्यशील पूंजी के स्रोत लॉन्ग-टर्म, शॉर्ट-टर्म या स्वतः हो सकते हैं. दीर्घकालिक कार्यशील पूंजी स्रोतों में दीर्घकालिक लोन, डेप्रिसिएशन के लिए प्रावधान, रिटेन किए गए लाभ, डिबेंचर और शेयर पूंजी शामिल हैं. शॉर्ट-टर्म कार्यशील पूंजी स्रोतों में लाभांश या टैक्स प्रावधान, नकद ऋण, सार्वजनिक जमा और अन्य शामिल हैं. स्वतः कार्यशील पूंजी ट्रेड क्रेडिट से प्राप्त की जाती है, जिसमें देय नोट और देय बिल शामिल हैं.
बैलेंस शीट या ऑपरेटिंग साइकल व्यू के आधार पर कई कार्यशील पूंजी हैं. बैलेंस शीट व्यू कार्यशील पूंजी को निवल में वर्गीकृत करता है (बैलेंस शीट में मौजूदा एसेट से घटाकर) और सकल कार्यशील पूंजी (बैलेंस शीट में मौजूदा एसेट). ऑपरेटिंग साइकल व्यू कार्यशील पूंजी को अस्थायी (नेट वर्किंग कैपिटल और स्थायी कार्यशील पूंजी के बीच अंतर) और स्थायी (फिक्स्ड एसेट) कार्यशील पूंजी में वर्गीकृत करता है.
स्टार्टअप इंडिया - एक स्टार्टअप क्रांति की शुरुआत
स्टार्टअप इंडिया भारत सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य देश में स्टार्टअप्स और नये विचारों के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है जिससे देश का आर्थिक विकास हो एवं बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उत्पन्न हों।
स्टार्टअप एक इकाई है, जो भारत में पांच साल से अधिक से पंजीकृत नहीं है और जिसका सालाना कारोबार किसी भी वित्तीय वर्ष में 25 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है। यह एक इकाई है जो प्रौद्योगिकी या बौद्धिक सम्पदा से प्रेरित नये उत्पादों या सेवाओं के नवाचार, विकास, प्रविस्तारण या व्यवसायीकरण की दिशा में काम करती है।
सरकार द्वारा इस संबंध में घोषित कार्य अप कैपिटल क्या हैं योजना स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पहलुओं को संबोधित अप कैपिटल क्या हैं करने और इस आंदोलन के प्रसार में तेजी लाने की उम्मीद करती है।
सरकार ने बदली छोटी कंपनियों की परिभाषा, पहले से ज्यादा कंपनियों को मिलेगी अब नियमों में राहत
सरकार ने छोटी कंपनियों की परिभाषा को बदल कर सीमाओं को बढ़ा दिया है. इससे अब कई और कंपनियां भी छोटी कंपनियों की सीमा में आ सकेंगे. इससे उन्हें कई तरह के नियमों में राहत मिलेगी और काम करने में आसानी होगी. सरकार ने आज छोटी कंपनियों के लिए के लिए पेड-अप कैपिटल और कारोबार सीमा में संशोधन किया है और सीमाएं बढ़ा दी हैं. जिससे अब और कंपनियां इसके दायरे में आ सकेंगी और उनका अनुपालन बोझ कम हो जाएगा. छोटी कंपनियों को कई नियमों में छूट मिलती है. नई सीमा के बाद कई और कंपनियों को इस छूट का लाभ मिलेगा. सरकार काफी समय से कारोबारी सुगमता पर जोर बढ़ा रही है. परिभाषा में बदलाव इसी दिशा में उठाया गया कदम है.
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अप कैपिटल क्या हैं
- शिकायत सेल
- कारपोरेट कार्य मंत्री
- कारपोरेट कार्य राज्य मंत्री
- मुख्यालय के अधिकारियों की सूची
- DGCOA अधिकारि
- प्रादेशिक निदेशक
- कंपनी रजिस्ट्रार
- शासकीय समापक
- लागत लेखापरीक्षा शाखा (सीएबी)
- नोडल अधिकारी
- अनु. जाति/अनु. जनजाति/ अ.वि.वर्ग के लिए संपर्क अधिकारी
- वेब सूचना प्रबंधक
कंपनी अधिनियम की धारा 609 के तहत नियुक्त कंपनी रजिस्ट्रार (आरओसी) जो विभिन्न राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों में पदस्थ हैं को संबंधित राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों में स्थित कंपनियों/एलएलपी के पंजीकरण तथा ऐसी कंपनियों/एलएलपी द्वारा अधिनियम के तहत सांविधिक अपेक्षाओं की अनुपालन सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है। ये कार्यालय उनके पास पंजीकृत कंपनियों से संबंधित रिकार्ड की रजिस्ट्री के रूप में कार्य करते हैं, ये रिकार्ड आम जनता को निर्धारित शुल्क अदा करने पर निरीक्षण के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। केन्द्र सरकार इन कार्यालयों पर संबद्ध प्रादेशिक निदेशकों के माध्यम से प्रशासनिक नियंत्रण का प्रयोग करती है।.
अब पहले से ज्यादा कंपनियों को मिलेगी नियमों में राहत, सरकार ने बदली छोटी कंपनियों की परिभाषा
सरकार ने छोटी कंपनियों की परिभाषा को बदल कर सीमाओं को बढ़ा दिया है. इससे अब कई और कंपनियां भी छोटी कंपनियों की सीमा में आ सकेंगे. इससे उन्हें कई तरह के नियमों में राहत मिलेगी और अप कैपिटल क्या हैं काम करने में आसानी होगी.
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सरकार ने आज छोटी कंपनियों के लिए के लिए पेड-अप कैपिटल और कारोबार सीमा में संशोधन किया है और सीमाएं बढ़ा दी हैं. जिससे अब और कंपनियां इसके दायरे में आ सकेंगी और उनका अनुपालन बोझ कम हो जाएगा. छोटी कंपनियों को कई नियमों में छूट मिलती है. नई सीमा के बाद कई और कंपनियों को इस छूट का लाभ मिलेगा. सरकार काफी समय से कारोबारी सुगमता पर जोर बढ़ा रही है. परिभाषा में बदलाव इसी दिशा में उठाया गया कदम है.
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